हाँ मैं
हाँ मैं भावनाओं से भरी मैं बह जाती हूँ इस मतलबी दुनियां में हर रिश्ते के लिए दिन रात मरती
Read Moreमित्रों यह कविता मैं 2005 के फरवरी माह के आखिरी सप्ताह में लिखा था। उस समय मैं ग्यरहवीं की परिक्षा
Read Moreनवजीवन ******** आशंकित सी मैं… थी व्याकुल दर्द- वेदना से आकुल मिला चैन थमा सैलाब ! फिर… नवजीवन की गूंजी
Read Moreशब्दों के कोलाहल में जो, अंतर्मन की बात करे, बाहर से बहरे गूंगे बन, अंतर्मन से संवाद करे। प्रतिभाओं को
Read Moreजो कुछ है इस प्रकृति में वह यहीं के है हम सभी हैं उसका अधिकारी छीननेवालों से डरना क्यों हम
Read Moreअरमानों के पंख लगाके, इस दुनिया में आई थी। रूप रंग सिंगार देखके, सबके मन को भाई थी। बड़े प्यार
Read Moreराम के भी राम के स्वरूप हैं अनेक राम धरि रूप भूतल पर आये अनेक है ।। ईसा मूसा नानक
Read Moreदेख ‘मां’ को गुलामी की जंजीरों में रक्त तुम्हारा उबल पड़ा था । तुम्हारी एक हुंकार से तब देश तुम्हारे
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