“गीतिका”
छंद – आनंदवर्धक,मापनी- 2122 2122 212,पदांत- नहीं,समांत- अहरी रात की यह कालिमा प्रहरी नहीं दिन उजाले में डगर ठहरी नहीं
Read Moreजो खुशी गम के पल आते जाते रहे, कुछ रहे याद कुछ हम भुलाते रहे । नींद रातों की छीनी
Read Moreज़हरीले साँपों से बचना मुश्किल है छल करने वालों से बचना मुश्किल है । ना कहने वालों का साफ जवाब
Read Moreरात पर जय प्राप्त कर जब, जगमगाती है सुबह। किस तरह हारा अँधेरा, कह सुनाती है सुबह। त्याग बिस्तर नित्य
Read Moreकोई मुझे रोक लेता इस जमाने में क्योंकि मैं खोया हूँ किसी मयखाने में मुझे क्या पता था ये दिन
Read More122 122 122 122 वो जब भी चला छोड़ने मैकशी को । अदाएं जगा कर गईं तिश्नगी को ।। बयाँ
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