ग़ज़ल
बेटियों को मुझे पढ़ाने दो। और दीपक मुझे जलाने दो। बाग में कम न हो कहीं खुश्बू, कुछ और फूल
Read Moreचुनावी वायदे करके सदा मुकरने का सियासी चाल है ये,अपना पेट भरने का वो ज़िन्दगी का कभी लुत्फ़ ना उठा
Read Moreअमीरी है तो फिर क्या है हर इक मौसम सुहाना है ग़रीबों के लिए सोचो कि उनका क्या ठिकाना है।
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