“सावन में”
सपनों में ही पेंग बढ़ाते, झूला झूलें सावन में। मेघ-मल्हारों के गानें भी, हमने भूलें सावन में।। — मँहगाई की
Read Moreसपनों में ही पेंग बढ़ाते, झूला झूलें सावन में। मेघ-मल्हारों के गानें भी, हमने भूलें सावन में।। — मँहगाई की
Read Moreमलय-हिमालय-विंध्य-सतपुड़ा अंबर धरा पे लाते हैं अरब-हिन्द-बंगाल के मोती, तेरे पग सहलाते हैं जय भारती! हे भारत माँ! हम तेरे
Read Moreकलम कहीं कब रुक पाती है ,नभ में परे उड़ान । कह जाती है प्रीत दिलों की ,नयन लिए अरमान
Read Moreमन रूपी घट बसे साँवरे,फिर भी तृष्णा रही अधूरी । जैसे वन वन ढूँढ़ रहा मृग ,छिपी हुई मन में
Read Moreरूठ गई गोद माँ की शहीद भाई हो गया। पत्नी के मांग का सिंदूर हो तार-तार बिखर गया। यह युद्ध
Read Moreप्रणय निवेदन भेज रही हूं, कर लेना स्वीकार प्रिये। मेरी हर धड़कन साँसों पर कर लेना अधिकार प्रिये। ढूंढ रहे
Read Moreमेहनत मजदूरी कर करके ,इक परिवार चलाती माँ । दिन भर श्रम में जुट जानें को ,कुछ कम ही सो
Read Moreबाबुल के आँगन की बेटी , न हुई कभी परायी है जुदा होने की जो सोच लूँ , दिल दे
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