मधुगीति : होते हुए भी हैं कहाँ !
होते हुए भी हैं कहाँ, हम जहान में रहते कहाँ; देही यहाँ आत्मा वहाँ, बस विचरते यों हीं यहाँ !
Read Moreहोते हुए भी हैं कहाँ, हम जहान में रहते कहाँ; देही यहाँ आत्मा वहाँ, बस विचरते यों हीं यहाँ !
Read Moreसम्बन्धों की दुनियादारी, अनुबन्धों की बात करो। सपने कब अपने होते हैं, सपनों की मत बात करो।। लक्ष्य नहीं हो
Read Moreसूरज चमका नीलगगन में, फिर भी अन्धकार छाया धूल भरी है घर आँगन में, अन्धड़ है कैसा आया वृक्ष स्वयं
Read Moreआज है तम तू सूरज बनके, करले उसका सामना, वीरता से आगे बढ़कर, डोर समय की थामना- समय कभी रुकता
Read Moreनया-नया निर्माण हो अपना, विश्व नया इक सुंदर हो ग़ैर न जिसमें कोई लगता, वैर न किसके मन में हो-
Read Moreये जो ज़िंदगी की किताब है, ये किताब भी क्या किताब है, कहीं सदियों का भी ज़िकर नहीं, कहीं लम्हों
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