दोहे “जिजीविषा”
रहती है आकांक्षा, जब तक घट में प्राण। जिजीविषा के मर्म को, कहते वेद-पुराण।। — जीने की इच्छा सदा, रखता
Read Moreरहती है आकांक्षा, जब तक घट में प्राण। जिजीविषा के मर्म को, कहते वेद-पुराण।। — जीने की इच्छा सदा, रखता
Read Moreजाड़ा बनकर के कहर,लगता लेगा जान । बना हुआ है काल यह,इसको लो पहचान। कहीं बर्फ,कहीं जल गिरे,गीला हर इनसान
Read Moreनवनीत नयन के नव उपवन मे, वृक्ष नये आरोपित हो। हर्षित हो हर जन का जीवन , मन्त्र मुग्ध आलोकित
Read Moreसूरज आया इक नया,गाने मंगल गीत ! प्रियवर अब दिल में सजे,केवल नूतन जीत !! उसकी ही बस हार है,जो
Read Moreचला वर्ष उन्नीस भी, छोड सभी का साथ. हमें थमा कर हाथ में, नये साल का हाथ.. पन्नो मे इतिहास
Read Moreपरिवेश पर विविध दोहे — उच्चारण सुधरा नहीं, बना नहीं परिवेश। अँगरेजी के जाल में, जकड़ा सारा देश।१। — अपना
Read Moreबन गया सूरज भी छल्ला, चाँद के प्रभाव से, आग का गोला छिपा, शीतलता के स्वभाव से| था कभी देता
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