मुक्तक
शीर्षक -दीवार,भीत,दीवाल “मुक्तक” किधर बनी दीवार है खोद रहे क्यूँ भीत। बहुत पुरानी नीव है, मिली जुली है रीत। छत
Read Moreपहली बारिश आ गई, लोग मचाते शोर। धरती तपती अब नहीं, लगे सुहानी भोर।। घुमड़ घुमड़ कर आ गए, फिर
Read Moreहोती है बरसात की, धूप बहुत विकराल। स्वेद पोंछते-पोंछते, गीला हुआ रुमाल।। — धूप-छाँव हैं खेलते, आँखमिचौली खेल। सूरज-बादल का
Read Moreकब आओगे मेघ तुम,ये बतला दो आज। अब तो ला दो नीर तुम,हर्षित करो समाज।। तपती बस्ती आग से, सूरज
Read Moreहार नहीं सकते कभी , मन में ले विश्वास। जीत नहीं सकते कभी,शंका के बन दास। नागिन सी डसती रही,उसको
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