“मुक्तक”
“मुक्तक” हार-जीत के द्वंद में, लड़ते मनुज अनेक। किसे मिली जयमाल यह, सबने खोया नेक। बर्छी भाला फेंक दो, विषधर
Read Moreदहकां के दुख दर्द का,तनिक नहीं आभास। वोटन खातिर गाँव में , झूठा करें प्रवास। जनता किस बूते करे, इन
Read Moreजीवन मुरझाने लगा, ऐसी चली बयार ! स्वारथ मुस्काने लगा, हुआ मोथरा प्यार !! बिकता है अब प्यार नित, बनकर के सामान
Read Moreनारी पर दोहे — दुष्ट चक्षुओं से बचने को ,परदा करती नारि। नारी सुलभ संकोच ही , काफी इसे सँभारि।।
Read Moreलफ्फाज़ी होती रही, हुई तरक़्क़ी सर्द। समझ नहीं ये पा रहे, सत्ता के हमदर्द। अबलाओं पर ज़ुल्म कर, बनते हैं
Read Moreप्रेम, दया, करुणा सभी, मानव के श्रृंगार। मिल-जुलकर जो रह गये, हो जाये उद्धार। जीवन का दर्शन यही, यही समूचा
Read More