मुक्तक
सिर पर गठरी हाथ में बखरी और पाँव में छाले हैं। गया कमाने था सुख रोटी जी पानी के भी
Read Moreकोरोना के नाम पाँच-पाँच लॉक और डाउन, साँच को ना-ना आँच ! ×××××× लॉकडाउन 5.0 में ढील के साथ ढाल
Read Moreडॉ. सदानंद पॉल की कविताएँ 1. पुंडरीकाक्ष कौन ? ‘मङ्गलम भगवान विष्णु, मङ्गलम गरुड़ध्वज; मङ्गलम पुण्डरीकाक्ष:, मंगलाय तनोsहरि:!’ के शब्दार्थ
Read Moreउड़ने दो मन को, अनंत आवरण में समन्वित रूप में अपना कुछ बनने दो, विचारों के जग में एकता हमारी
Read Moreमन के दशरथ को संभाल ले ! दिख जाए जिस दिन सफेदी ठान ले ! तन के दशरथ की लगाम
Read Moreमजदूर(हाइकू) सड़क पर भटक रहे नित ये मजदूर… खाने को नहीं पीने को नहीं पानी हैं मजबूर… हैं नंगे पाँव
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