कविता – गुनगुनी धूप
सुनहरी धूप अंतस्तल में समाई बीते दिनों की यादें संग लाई । आँगन में कभी अपनों के संग मस्ती करते
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Read Moreयुद्ध की हुंकार थी , ललकार की वाणी थी वो सिर्फ झांसी की न पूरे हिंद की रानी थी वो
Read Moreवक्त के साथ बदलना अच्छा है। चल मुसाफिर! अकेला चलना अच्छा है।। राह में और मौके भी मिलेंगें। मुहब्बत भी
Read Moreकिसी का भी जन्मदिन हो, फेसबुक फूल बरसाता है, बहुमंजिला केक पर मोमबत्ती जलाता है, गिफ्ट पैक्स के दर्शन कराता
Read Moreऐसे क्यों हो तुम ?? क्यों मुझे इतना सताते हो , मुझे पास बुलाते हो हरदम, खुद दूर चले
Read Moreपिता को पत्र लिखा था वह मृत्यु के नगर गए थे और अब पते की जरूरत थी सब भाषाओं को
Read Moreमिट्टी के जिस्म पे गुमान करने वाले एक दिन ऐसा आयेगा कर्म करेगा खुद ही और खुद ही अपने कर्मो
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