ग़ज़ल
वक्त-ए-आखिर तुझमें मुझमें फर्क क्या रह जाएगा ना रहेगा कोई छोटा, ना बड़ा रह जाएगा काम आएँगी वहां बस अपनी-अपनी
Read Moreतूफानों का हद से गुजरना जारी है । छत से तेरे चाँद निकलना जारी है ।। ज्वार समन्दर में आया
Read More(मथुरा में हुयी आगजनी, हिंसा और मौतों पर मथुरा की पीड़ा को दर्शाती मेरी नई कविता) मैं मथुरा नगरी हूँ,
Read Moreयूँ लगा निकला नया दिनमान है स्वच्छ भारत का शुरू अभियान है तय है होगी ये सदी इस देश की
Read Moreअतुकान्त रचना रास छन्द पर आधारित [८+८+६] जीवन मनका, प्राण आधार निहित वृक्ष माया नगरी प्यार संतान सहज चित्र अनुपम
Read Moreमेरी मंज़िल भी तुम,मेरी राह भी तुम सफ़र भी हो तुम्ही,हमराह भी तुम हर ख़ुशी मेरी तुमसे ही है
Read Moreधीरज मन झरने लगा, कटा आम का पेड़ गरमी बढ़ती जा रही, दिखे पेड़ इक रेड़दिखे पेड़ इक रेड, हरे
Read Moreयूँ हर मोड़ को जीने का मजा तेरे साथ भी लेते तो तेरी बेरुखी के सहारे न खोते ये तो
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