छंद मुक्त रचना : सताती गर्मी
तपे जेठ दुपहरिया संझा गरम बयरिया। भोर ,शीतलता खोती रातें मुंह ढ़क के रोती। धरती का जलता सीना पशु पक्षियों
Read Moreतपे जेठ दुपहरिया संझा गरम बयरिया। भोर ,शीतलता खोती रातें मुंह ढ़क के रोती। धरती का जलता सीना पशु पक्षियों
Read Moreदिल तो आखिर दिल है, दिल ही दिल में कैसे पल दो पल में, क्या से क्या हो जाता है,
Read Moreतलाश ही तो है जिंदगी धरा पर अवतरण से ही माँ की गोद की तलाश डगमग करते साधते प्रथम कदम
Read Moreहमें नहीं काट रहे हो तुम काट रहे हो अपने जीवन को, मुझे मारकर तुम बुला रहे हो अपने मरण
Read More‘जल है जीवन’ सूख जाएगा इक दिन पानी, करते रहे अगर तुम मनमानी। इसको बचाओ, मान लो भाई, ‘जल है
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