जिम्मेदार होगे तुम
कांप रही है धरणी तड़प रहा है गगन देखकर कटे वन कानन को नयन से नीर आया छलक वर्षा
Read Moreकांप रही है धरणी तड़प रहा है गगन देखकर कटे वन कानन को नयन से नीर आया छलक वर्षा
Read Moreये हरे भरे वृक्ष हमे , सदा यु ही भाते हैं | अपने बड़े -बड़े टहनियों से , ठंढी हवा
Read Moreक्या लिखू क्या ना लिखूं , मेरी कलम ही रुक जाती | जब से तुम बिछड़ी , लिखना बंद सी
Read Moreगत दिनों तक चर्चा में रहती थी नग्नता अन्यान्य बिम्ब-प्रतिबिम्बों की, पर – आज जिधर दृष्टि पड़ती टूटती मर्यादाएं बिखरते
Read Moreख्वाहिश अपने दिल की हे रब किसी से छीन कर मुझको ख़ुशी ना दीजिये जो दूसरों को बख्शी को बो
Read Moreहमें अपना जीवन आदर्शो के आधीन करना है, अपनी मेहनत को अपनी उपलब्धियों में परिवर्तित करना है, प्रकृति में एक
Read More