सृष्टि
बदलता मौसम देता संदेश प्रकृति बदलती अपना परिवेश क्यों करते हो तुम खेद ? न जानो तुम सृष्टि का भेद
Read Moreबातें बीते समय की थीं अपने परायों की यादें
Read Moreदादाजी कहा करते थे, ‘मनिहारी श्मशान घाट’ की धूल-धूसरित “जिलेबी” खाने से भूत-प्रेतों से दोस्ती ‘सीधे’ हो जाती है !
Read Moreचाय सदा बहार पेय है बच्चे बूढ़े और जवान सब को चस्का चाय का काली,निबू वाली फिर हो चाय दूध
Read Moreअवचेतन हृदय व्योम पर, बिखरी है यत्र सर्वत्र, तुम्हारे प्रेम की सुरभि। सुरभि जिसमें समाहित है, अपनत्व का अथाह सौरभ।
Read Moreहम सब मिलकर करेगें, देश हित अच्छा काम। जिस से ऊँचा पूरे विश्व में, भारत देश का नाम। अपनी कलम
Read Moreकिसी का दिया नहीं खाता हूँ अपना परिश्रम स्वयं करता हूँ खेतों में हल और ट्रेक्टर चलाता हूँ धूप में
Read Moreमन कहता है मेरा, कुछ ना कुछ तो आज लिखूंँ सोच रही हूंँ आखिर, मैं आज …..क्या लिखूंँ …… गरम
Read Moreबचपन की परीक्षा के दिनों में सबसे आसान लगते थे। “एक अंक के प्रशन”। “खाली स्थान भरो”। “सही या गलत
Read Moreसर्वशक्तिमान सीमाएं अदालत की बड़ी अच्छी तरह से पहचानती हैं, उसके ‘लूपहोल’ में अपने फायदे-नुकसान का गणित बड़ी अच्छी तरह
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