अंदर की नहीं जानते
चेहरे को पढ़ लेते हैं, अंदर की नहीं जानते दरिया से वाकिफ हैं, समंदर की नहीं जानते करते हैं इबादत
Read Moreचेहरे को पढ़ लेते हैं, अंदर की नहीं जानते दरिया से वाकिफ हैं, समंदर की नहीं जानते करते हैं इबादत
Read Moreक्या देख रहे हो मुझे इतनी गौर से मैं गुजरा हूं वक़्त हूं जा रहा हूं कभी गुलज़ार था अपने
Read Moreजिनको हमने दोस्त बनाया , वही पीठ पर भोके खंजर। जिनको हमने अपना माना उनके हाथ खून से लता पथ।
Read Moreआसान कहाँ होता है, पुरुष बन जाना! कभी प्रेमी तो कभी पागल कभी, देवदास बन जाना! कोई रूठे तो बेसुरे
Read Moreहाँ, मैं मछली हूँ, तड़पता हूँ ज्ञान के लिए उस सत्संग के लिए जहाँ अविरल झरझर अंतरंग की धार हो
Read Moreसांध्य कालीन ध्यान में मन पहुंच गया आकाश में तारों के बीच फिर जाकर अटक गया ध्रुव तारे पे बचपन
Read Moreमैं समाज से बोलता हूँ दुनिया से बोलता हूँ मनुष्य से बोलता हूँ मेरे पास वह शक्ति नहीं उन भेड़ियों
Read Moreजल को खूब बहाएगे , फिर हाहाकार मचाएंगे न मिले जल तो शोर मचा – मचा चिल्लाएंगे । घर से
Read Moreमैंने बचपन को खोते देखा गरीब के घर मेंवह बच्चा थापर वह बचपन-सा प्यार ना पा सकाउसे बचपन में ही
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