वर्ष के दो महीने
वर्ष के दो महीने दिसम्बर और जनवरी एक वर्ष के अंत की दस्तक देता दूसरा वर्ष के प्रारम्भ का आगाज
Read Moreवर्ष के दो महीने दिसम्बर और जनवरी एक वर्ष के अंत की दस्तक देता दूसरा वर्ष के प्रारम्भ का आगाज
Read Moreवत्त दूर तक फैले पहाड़ों के बीच से धूप जो आ रही है पास थोड़ी देर रुककर वह, लौटती है,
Read Moreआज सुबह धूप के टुकड़े से मुलाकात हुई कुछ बात हुई मैंने कहा, ”रुई के फाहे जैसे धूप के टुकड़े
Read Moreनेह लगाकर भूल गए क्यों पास बुलाकर दूर गए क्यों। मैं तो तुम्हरी प्रीत बाबरी , वंशी बजाकर छोड़ गए
Read Moreउम्मीदों के चिराग , आज भी हैं बेहिसाब । क्या हुआ जो रात एक गुजर गई । मौसम के मिजाज
Read Moreक्या हो रहा है हमको ??? कहाँ से कहाँ जा रहे है हम ?? शायद आधुनिक हो रहे है। हम
Read Moreवह चटकती है कांच सी खिलती कचनार सी टूटती है दीवार सी राह में नारी के विकार हैं,व्यवधान हैं दुविधाएँ
Read More. सुनो सखी, सुनो आओ आई आज पिया की पाती हैं . रात दिन तड़पू मैं यहाँ याद जब उनकी
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