“मुक्त काव्य”
“छंद मुक्त गीतात्मक काव्य” जी करता है जाकर जी लू बोल सखी क्या यह विष पी लू होठ गुलाबी अपना
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Read Moreकभी आपने सोचा? अपने अपनों से दूर, रिश्ते हो गये हैं कितने लाचार और मजबूर । किसी को एक दूसरे
Read Moreहज़ार वादे झूँठ है एक सच के सामने। जैसे इंसान खड़ा हो आईने के सामने।। बेमतलब के झगड़े होते आमने
Read Moreछोड़ दो तराशना अब मासूम पत्थरों को हो सके तो कभी खुद को भी तराश लो। तराश कर पत्थरों को
Read Moreतुम कहते हो कि तुम झूठ नही बोलते, अच्छी बात है, पर क्या सच बोलते हो हर बार बोलते होंगे
Read Moreएक मासूम सी कली थी रानी निष्पाप, कोमल था उसका मन। अंजान दुनिया की उलझनों से निश्छल, निष्कपट दो प्यारे
Read Moreआहिस्ता-आहिस्ता चलो पांव से यह पायल खनक न जाए पांव से खनकेगी पायल तो दिल मचलेंगे आधी रात में मिलने
Read Moreबिखरे यादों के पन्नों से थक गई कलम डायरी फिर हार गई। कोशिश थी मेरी सहेजने समेटने की रखा था
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