बसंत
बसंत की बहार हैपीली पीली सरसों निखरी हैखिला खिला चमन हैलेखक मन ने उठाई है कलमप्रथममाँ सरस्वती के चरणों मेंशत
Read Moreनहीं कर सकता मजबूर किसी कोमिशन की राह पर जाने को,सुप्तावस्था में सोये समाज जगाने को,इस राह में जागे जमीर
Read Moreप्रयाग राज में कुंभ लगी हैभग्तो की तो धूम मची हैअपना जीवन धन्य हो जाताचलो सखि मिल कुंभ नहाएं।गंगा यमुना
Read Moreमैं हवा हूँ खुद ही बीमार हो गईजब से हर तरफ ज़हर की भरमार हो गईसुधरता कोई नहीं कचरा फैला
Read Moreपुरानी बातें भूलने को कहते हो,अपने दिखाये झूले में झूलने को कहते हो,खुद भूल नहीं पा रहे हो,हमें सपने दिखा
Read Moreआ गया ऋतुराज बसंत।प्रकृति ने ली अंगड़ाई,खिल गया दिग दिगंत।। भाव नए जन्मे मन में,उल्लास भरा जीवन में।प्रकृति में नव
Read Moreवो चिल्ला चिल्ला बताने लगा,लिखे हैं बहुत किताबें सुनाने लगा,अपने ही मुख खुद का करने लगा गुणगान,चमत्कारियों की करतूतों काहर
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