धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

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अविद्या दूर करने का एकमात्र उपाय वैदिक साहित्य का स्वाध्याय

ओ३म् मनुष्य की आत्मा के अल्पज्ञ होने के कारण इसके साथ अविद्या अनादि काल से जुड़ी हुई है। इसका एक

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महर्षि दयानंद एवं गुरुकुल शिक्षा प्रणाली

ओ३म् महर्षि दयानन्द सरस्वती (1825-1883) ने प्रज्ञाचक्षु दण्डी गुरू स्वामी विरजानन्द सरस्वती, मथुरा से वैदिक आर्ष व्याकरण एवं वैदिक शास्त्रों

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जप व ध्यान से जीवात्मा के भीतर ही ईश्वर का प्रत्यक्ष होता है।

ओ३म् ईश्वर को जानना व प्राप्त करना दो अलग-अलग बातें हैं। वेदों व वैदिक सहित्य में ईश्वर का ज्ञान व

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सर्वव्यापक व सदा अवतरित होने से ईश्वर का अवतार नहीं होता

ओ३म् भारत में मूर्तिपूजा का प्रचलन बौद्ध व जैन मत से आरम्भ हुआ है। बौद्ध मत के बढ़ते प्रभाव व

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सब सत्य विद्याओं का दाता व अपौरूषेय पदार्थों का रचयिता परमेश्वर है।

ओ३म् जीवन में जानने योग्य कुछ प्रमुख सूत्रों की यदि चर्चा करें तो इनमें प्रथम ‘सब सत्य विद्या और जो

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योगेश्वर श्री कृष्ण, गीता एवं वेद

ओ३म् श्री कृष्ण योगेश्वर थे, महात्मा थे, महावीर, धर्मात्मा व सुदर्शनचक्रधारी थे। वह वेदभक्त, ईश्वरभक्त, देशभक्त, ऋषियो व योगियों के

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