धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

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स्वाध्याय से जीवनोद्देश्य का ज्ञान व इच्छित फलों की प्राप्ति

संस्कृत का “स्व” शब्द विश्व के भाषा साहित्य का एक गौरवपूर्ण व महिमाशाली शब्द है। इस शब्द में स्वयं को

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गीता मेरा हृदय है —–श्री कृष्ण

गीता मे हृदयं पार्थ गीता मे सारमुत्तमम्। गीता में ज्ञानमत्युग्रं गीता मे ज्ञानमव्ययम्। । गीता की महत्ता के विषय में

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वेदों की उत्पत्ति कब व किससे हुई?

भारतीय व विदेशी विद्वान स्वीकार करते हैं कि वेद संसार के पुस्तकालय की सबसे पुरानी पुस्तकें हैं। वेद चार है,

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्मब्लॉग/परिचर्चा

अन्धविश्वास एवं आस्तिकता में क्या भेद है?

शंका- रामपाल प्रकरण में तमाम मीडिया धर्म को अन्धविश्वास का प्राय: बता रहा हैं एवं यह दिखाने का प्रयास कर

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पीडि़तों की सेवा मनुष्य का धर्म

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसके चारों ओर अपने निकट सम्बन्धी और पड़ोसियों के साथ मि़त्र व पशु-पक्षी आदि का

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आइये चले अँधेरे से उजाले की ओर

मित्रो, आइये प्रण कीजिये की हम इन सभी धर्म मजहबो को छोड़ के कोई मानवतावादी और नैतिकतावादी सिद्धांत अपनाएंगे जो

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्मब्लॉग/परिचर्चा

नास्तिकता बनाम् आस्तिकता

हमारे देश व समाज में कुछ बन्धु स्वयं को नास्तिक कहते हैं। उनसे पूछिये कि नास्तिक का क्या अर्थ होता

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्मब्लॉग/परिचर्चा

मनुस्मृति का सर्वग्राह्य शुद्ध स्वरूप

समस्त वैदिक साहित्य में मनुस्मृति का प्रमुख स्थान है। जैसा कि नाम है मनुस्मृति मनु नाम से विख्यात महर्षि मनु

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