कविता
जाने वालो के कदमों के निशा बाकी है नहीं अभी मिटा पाए ये बेरहम पानी की लहर क्योंकि वो निशा
Read Moreमंच मंच हुआ खूब प्रचार, सत्ता दे दो मालिक अंतिम बार। सेवा करूंगा फिर से पुरजोर, विनती
Read Moreशरद ऋतु की रात में 8:00 बजे का समय रहा होगा। शांत वातावरण में दरवाजे के बाहर टुक-टुक की धीमी
Read Moreइस जमाने की आधी से ज्यादा आबादी तो वैसे ही भेड़ चाल में जीने की आदी हो चुकी है, फिर
Read Moreएक ही विभाग में काम करने वाले मोहन बाबू और सुधीर जी में गहरी मित्रता थी। जब मोहन बाबू के
Read Moreचिनगारियों की सुर्ख डगर देख रहा हूं इक आग का दरिया है जिधर देख रहा हूं। बाहर से खूब जगमगा
Read Moreबड़ा सरल है खुद को जीतना, मगर जीतने के लिए खुद से लड़ना कठिन है। हम जीत सकते हैं ये
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