संस्मरण : वो होस्टल के दिन
बात उन दिनों की है जब हम परास्नातक करने गोरखपुर विश्वविद्यालय में पहुँचे।दाखिला मिलने के बाद रहने की समस्या आयी
Read Moreबात उन दिनों की है जब हम परास्नातक करने गोरखपुर विश्वविद्यालय में पहुँचे।दाखिला मिलने के बाद रहने की समस्या आयी
Read Moreमैं अपने घर में दीया जलाये बैठा था कि बाहर कुछ शोर सुनाई दिया। मैंने दरवाज़ा ज़रा-सा खोलकर झाँककर देखा
Read Moreजंगल की तुम सुनो कहानी। सुना रही थी मेरी नानी।। हथिनी हाथी पर चिंघाड़ी। फ़टी हुई है मेरी साड़ी।। नई
Read Moreबाहर से देखने पर तो वह आदमी ही दिखाई पड़ता है। लेकिन वास्तविकता इसके विपरीत ही नज़र आती है। उसकी
Read Moreकितने अद्भुत अपने पैर! नहीं किसी से करते बैर।। सबको मंज़िल तक पहुँचाते। ये दुनिया भर को करवाते ।। मेला
Read More1 जैसी मन की सोच है,वैसे ही फल फूल। सोचा अगर बबूल है,चुभें देह में शूल।। चुभें देह में शूल
Read Moreगीत का सावन उमड़ता प्रीति का शुभ स्वप्न पलता चांद सी तुम हंस रही हो शून्य उर में धंस रही
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