मैं और तुम
अप्रैल का महीना और गर्मी का ये आलम ,शीला का गर्मी के मारे बुरा हाल था | “सुनो जी !
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Read Moreदरश की लालसा मोहन के जब तक साँस बाक़ी है | पियूँ नित नाम रस प्याला मिलन की प्यास बाक़ी
Read Moreहमारी भारतीय संस्कृति में नित्य कोई न कोई तीज-त्यौहार, पर्व मनाते है । भादवा बदी द्वादशी के दिन गौ माता,
Read Moreभारतीय समाज में काश्मीर से लगाकर कन्याकुमारी तक ,हर माँ या दादी या नानी नन्हें बच्चों को
Read Moreबीता वक्त न लौट कर आता, इस सच्चाई को स्वीकार करें हम। बीती बातों पर मिट्टी डालें, वर्तमान में जी
Read Moreप्यासी धरती जैसे तरसे बारिश की एक बूंद की खातिर, मेरा मन भी मचल रहा है तुमसे अब मिलने की
Read Moreसृजन-से-सृजन होता है, यह तो आप जानते ही हैं. पेड़-पौधे-वल्लरियां, मनुष्य-प्राणी, कीड़े-मकोड़े, पशु-पक्षी सभी सृजन-से-सृजन करने के अनुपम उदाहरण हैं.
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