ग़ज़ल
ज़िन्दगी इतनी उदास क्यूं है भटकती हुई-सी आस क्यूं है । सब कुछ है दिखावटी,नकली, खोखला इस कदर हास क्यूं
Read Moreभारतीय समाज में काश्मीर से लगाकर कन्याकुमारी तक ,हर माँ या दादी या नानी नन्हें बच्चों को
Read Moreबीता वक्त न लौट कर आता, इस सच्चाई को स्वीकार करें हम। बीती बातों पर मिट्टी डालें, वर्तमान में जी
Read Moreप्यासी धरती जैसे तरसे बारिश की एक बूंद की खातिर, मेरा मन भी मचल रहा है तुमसे अब मिलने की
Read Moreसृजन-से-सृजन होता है, यह तो आप जानते ही हैं. पेड़-पौधे-वल्लरियां, मनुष्य-प्राणी, कीड़े-मकोड़े, पशु-पक्षी सभी सृजन-से-सृजन करने के अनुपम उदाहरण हैं.
Read Moreअब नहीं आँखों में कोई भी शरम हो गये हैं लोग कितने बेशरम की नहीं जिसने कभी कोई मदद चाहते
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