गज़ल
मलमल के कपड़े में लिपटी लोहे की तलवारों सा चेहरा उसका फूलों जैसा और लहज़ा है खारों सा है उसकी
Read Moreलुप्त होती पीढ़ी को मेरा नमन चमकाया महकाया अपना वतन। बनाकर घरौंदे मिट्टी के सुनी नानी की कहानियाँ, सदी इक्कीसवीं
Read Moreप्रसन्नता की प्रतिमा थी वह, या खुशियों का गुलदस्ता, लगी सोचने क्या क्या हो सकता, नाम सुघड़ सुकुमारी का. बड़ी-बड़ी
Read Moreएक नए अध्ययन से पता चला है कि भारत में स्वस्थ दिखने वाले अधिकतर शहरी लोग विटामिन की कमी से
Read Moreशहर को हुए तो गांव से भी गए, इक पक्की छत की तलाश में पेड़ों की छाँव से भी गए,
Read Moreबुंदेलखंड के बांदा जिले के एक पिछडे़ गांव ‘बल्लान’ में 1973 में जन्म हुआ और 1998 में प्राथमिक शिक्षा के
Read More