अतीत की अनुगूंज – 2 : छतरी
बाल्यावस्था की बात करूँ तो सबसे बड़ी विडम्बना होती है मानव बुद्धी का तेज विकास और उसी अनुपात में अनुभवशून्यता
Read Moreबाल्यावस्था की बात करूँ तो सबसे बड़ी विडम्बना होती है मानव बुद्धी का तेज विकास और उसी अनुपात में अनुभवशून्यता
Read Moreचाह नहीं मैं पन्नों पर अंकित हो इठलाऊं, चाह नहीं मैं सात सुरों में सजकर इतराऊं, चाह नहीं मैं काव्य
Read Moreरंगोत्सव पर प्रस्तुत छंदमुक्त काव्य…… ॐ जय माँ शारदा……! “छंदमुक्त काव्य” मेरे आँगन की चहकती बुलबुल मेरे बैठक की महकती
Read Moreअरविंद सवैया[ सगण ११२ x ८ +लघु ] सरल मापनी — 112/112/112/112/112/112/112/112/1 “अरविंद सवैया” ऋतुराज मिला मधुमास खिला मिल ले
Read Moreकौन है ये चौकीदार किसे कहते है चौकीदार यह सिर्फ एक नाम नहीं एक पहचान है आत्मसम्मान है देश की
Read Moreनदियां भी तो चलती है पिघलती है उद्गम से निकलती है पहाड़ों से गिरती है रास्ते ऊबड़ – खाबड़ है
Read Moreसुनहले, रंगीले, सजीले ,छबीले ! मधुर भाव मनके , भावना से गीले ! सुधि सुगन्ध सुरभित हुई मन गलियां । रंग सराबोर स्वप्न सहज
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