क्षणिकायें..
क्षणिकायें.. १- कौन सोचता है तेरे प्यार में जीने लगा हूँ जान देने की कौन सोचता है तेरे प्यार की
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Read Moreराम मंदिर आन्दोलन में मेरे विचारों के प्रकाशन के दौरान मेरे कई नये मित्र बने। उनमें दो नाम विशेष रूप
Read Moreसारी गेंहूँ गाँव वाले कूएँ पे आ गई थी. बहुत बड़ा ढेर लग गया था . गेंहूँ कि गहाई यानी
Read Moreमाँ, चुप क्यों हो कुछ बोलो तो ? अपने मन की पीड़ा को मेरे आगे खोलो तो माँ तुम क्यों
Read Moreमहात्मा बुद्ध को उनके अनुयायी ईश्वर में विश्वास न रखने वाला नास्तिक मानते हैं। इस सम्बन्ध में आर्यजगत के एक
Read Moreपुण्य हो गए शून्य मात जगदंबा बोली बढ़ गया पापाचार कि देखो धरती डोली उजड़ गया घर बार, मिला सब
Read Moreनेपाल की भयावह त्रासदी की विभीषिका को सभी संवेदनशील अपनी अपनी क्षमता और विवेक के अनुसार कम करने के प्रयास
Read Moreजीवन क्या है? कभी सोचता हूँ क्या सिर्फ ये भागमभाग है या कहीं कोई ठहराव भी है या यह एक
Read Moreअब तो हिचकियां भी नहीं आती तुम भूल गए हो इस कदर साथ मरने जीने की कसमें प्यार के वादे
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