कुण्डली/छंदपद्य साहित्य

हिंदी

पहली बार जो बोला,वो हिंदी का आखर है।
हिंदी मेरी मातृभाषा,हिंदी में सिद्धस्त हैं।।
पढ़ लिख बाबू बने,अंग्रेजी भाषा सीखी।
मातृभाषा भूल गयी,गुलामी से ग्रस्त हैं।।
घर में तो हिंदी बोलूं,बाहर विदेशी भाषा।
दो दो चेहरे से मन,बड़ा अस्त व्यस्त हैं।।
कर जोड़ निवेदन, करती निवेदिता है
हिंदी का सम्मान करो,हिंदी मातृहस्त हैं।।
#निवेदिता