कविता : नवजीवन
नवजीवन ******** आशंकित सी मैं… थी व्याकुल दर्द- वेदना से आकुल मिला चैन थमा सैलाब ! फिर… नवजीवन की गूंजी
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Read Moreपैसे लेकर बेचते, जो भी अपना वोट, जरा स्वार्थ में दे रहे, लोकतंत्र को चोट | अपराधी को वोट दे,
Read Moreअब प्रिय मन आप बिन, हर दिवस जलने लगा है, रात का गहरा अंधेरा, अब मुझे डसने लगा है ।
Read Moreशब्दों के कोलाहल में जो, अंतर्मन की बात करे, बाहर से बहरे गूंगे बन, अंतर्मन से संवाद करे। प्रतिभाओं को
Read Moreगीत उर्दू में लिखें ग़ज़लों को हिन्दी में कहें काव्य धारायें अदब सागर की जानिब यूँ बहें टूट जाएगा अकेला
Read Moreऐ वतन ऐ वतन ऐ वतन, ऐ वतन ऐ वतन ऐ वतन। तेरी पावन जमीं को नमन, तेरी पावन जमीं
Read Moreअगर दो पंख बेटी को छुएगी आसमां इक दिन कहेगा ये जहां सारा इसी की दासतां इक दिन भरेगी कल्पना
Read Moreजिले ने गंभीर हो नफे से पूछा, “भाई ये भांड किसे कहते हैं?” “कोई कलाकार जब स्वार्थवश अपनी कला को
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