सेवा का मूल्य
मेरे संस्कार मुझे बचपन से ही सदा सेवा की और अग्रसर करते रहते थे । मेवा खाने कि प्रवृति बचपन
Read Moreमेरे संस्कार मुझे बचपन से ही सदा सेवा की और अग्रसर करते रहते थे । मेवा खाने कि प्रवृति बचपन
Read Moreपांच साल से मैं उन्हें देख रही थी. शांति और सौम्यता की मूरत-सी वृंदा दीदी की स्वाभाविक ऊर्जा देखते ही
Read Moreनीला गगन उधार लिया, थोड़ी सी धरा रहे मुझमे। थोड़ी अग्नि थोड़ा सा जल, मीठी सी हवा बहे मुझमे। इस
Read Moreलाख ज़ुबाँ पे हों पहरे ख़ामोशी सब कह जाती है। सुनने वाला हो कोई चुप की दीवारें ढह जाती हैं।।
Read Moreवो कांच के टुकड़ों पे नँगे पाँव रोज़ चल रहा है। ख्वाब एक बेशर्म फिर भी पलकों तले पल रहा
Read Moreबन के शहर की एक खबर रहा हूँ मैं। ऐसा कब हुआ कि बेअसर रहा हूँ मैं। सांसों का ये
Read Moreबीत चला यह वर्ष देकर अपने रंग कुछ गहरे कुछ हल्के कई यादों के संग कुछ खट्टे कुछ मीठे पल
Read Moreआया है नववर्ष पुनः लेकर सपनों का भंडार, मन गागर भर उमंग छलकाए खुशियां अपार। चहूँ दिशा से बह रही
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