कविता – जगतजननी
हे माँ तेरी मोहनी छवि आँखों में बस जाये सुधबुध बिसरा कर मनवा तेरे ही गुण गाये कैसी लगन लगाई
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Read More******* स्मृति शेष ******* घावसमय के निठुर बड़े , रिसते हैं प्रतिपल हन कर स्मृति -शेष प्रियवर के अब ,
Read Moreपूज्य पिताजी ! मैं सम्भवत: दुनिया का सबसे अभागा व्यक्ति हूँ, आज मैं फूट फूट कर रो रहा हूँ. कितना
Read Moreकलम तुम इतनी बेबाकियां कहां से लाती हो। कुछ भी लिखने में देर नहीं लगाती हो। एक एक शब्द चुनकर,शब्द
Read Moreनई दिल्ली 25 सितंबर. अनमोल रत्न सेवा संस्थान का रजत जयंती समारोह मर्चेन्ट चेम्बर हाल कानपुर में बड़े उत्साह पूर्वक
Read Moreधूप का टुकड़ा (कविता) आज सुबह धूप के टुकड़े से मुलाकात हुई कुछ बात हुई मैंने कहा, “रुई के फाहे
Read Moreओ३म् मनुष्य एवं प्राणी जगत में जीव का माता-पिता तथा कार्य प्रकृति से संयोग होकर मनुष्य का एवं प्राणियों का
Read Moreओ३म् जिस सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान तथा सर्वज्ञ चेतन सत्ता ने इस संसार की रचना करने सहित हमारे शरीरों को बनाया है
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