कविता

पचती नहीं है पाप की रोटी

पचती नहीं है पाप की रोटी

पेट फाड़ कर बाहर आएगी
छोड़ दो खोटी कमाई करना

यह करामात जरूर दिखाएगी
किसी का बच्चा बिगड़ैल बनेगा
नशा करेगा चरस अफीम चिट्टा सब खायेगा
कोई ऐसी बीमारी से ग्रस्त होगा
सभी को हास्पिटल पहुंचाएगा
ज़्यादा की लालसा कभी कम न होगी
मन में हमेशा भरा रहेगा पाप
पाप की दौलत में व्यस्त रहेगा
भूल जाएगा अपना आप
अंत समय जब आएगा तेरा
यह दौलत की गठरी साथ नहीं जाएगी
दौलत किसी की नहीं हुई आज तक
मरने के बाद यूँ ही उड़ाई जाएगी
छोड़ दे जीते जी यह पाप के धंधे
बहुत बुरी होती है यह पाप की कमाई
मेहनत की कमाई से खाकर देख
आत्म संतुष्टि मिलेगी और मिलेगी बड़ाई
— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र