कविता

मुसाफिर हूँ यारो

मुसाफिर हूँ यारो, हकीकत दुनिया की जानता हूं,
मंजिल खुद चलकर पास नहीं आती, यह भी मानता हूं,
तकदीर के भरोसे बैठने से कुछ हासिल नहीं होगा,
फिर भी मंजिल को भूल गली-गली की खाक छानता हूं।
खुद पर विश्वास रख कर्म करो, संत-महंत बताते हैं,
भगवान श्री कृष्ण युद्ध क्षेत्र में भी गीता-ज्ञान सिखाते हैं,
सफर जारी रखो, जब तक मंजिल न मिले के साथ,
सफर में सामान कम रखो जैसी युक्तियां भी बताते हैं।
कष्ट-बाधाएं भी आती हैं अक्सर सफर में, परवाह न करो,
बाधाओं के पर्वत चीरकर अडिग साहस से निरंतर आगे बढ़ो,
कर्म की शाख हिलाने से ही विजय के फल-फूल मिल सकते,
तकदीर बनती ‘गर सफर की हमसफर “तदबीर” को बनाते चलो।

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244