मुसाफिर हूँ यारो
मुसाफिर हूँ यारो, हकीकत दुनिया की जानता हूं,
मंजिल खुद चलकर पास नहीं आती, यह भी मानता हूं,
तकदीर के भरोसे बैठने से कुछ हासिल नहीं होगा,
फिर भी मंजिल को भूल गली-गली की खाक छानता हूं।
खुद पर विश्वास रख कर्म करो, संत-महंत बताते हैं,
भगवान श्री कृष्ण युद्ध क्षेत्र में भी गीता-ज्ञान सिखाते हैं,
सफर जारी रखो, जब तक मंजिल न मिले के साथ,
सफर में सामान कम रखो जैसी युक्तियां भी बताते हैं।
कष्ट-बाधाएं भी आती हैं अक्सर सफर में, परवाह न करो,
बाधाओं के पर्वत चीरकर अडिग साहस से निरंतर आगे बढ़ो,
कर्म की शाख हिलाने से ही विजय के फल-फूल मिल सकते,
तकदीर बनती ‘गर सफर की हमसफर “तदबीर” को बनाते चलो।
— लीला तिवानी