कहानी – ना तेरी ख़ता ना मेरी ख़ता
यह ज़िंदगी काफ़ी उलझनों का ताना-बाना लिए हमें विवशता के भंवर में डुबो देती है। जिससे उबरने में वक़्त लगता
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Read Moreरात के बारह बज रहे थे, दिसंबर की सर्द रात, शर्मा जी का मोबाइल बज उठा, ऐसे में मन में
Read Moreवह अब हर रोज बगै़र कोई नागा किए आ रहा है। खुले मैदान में जहां से लोग उसके सामने से
Read Moreसुधा तैयार होकर बेटे को लेकर घर से निकल कर जैसे ही थोड़ा आगे गयी तो, चबूतरे पर बैठी हुईं
Read Moreआज अदिति के आफिस का पहला दिन था,छोटे शहर से आयी हुई लड़की थी थोड़ी सी घबराहट उसके पूरे व्यक्तिव
Read Moreआज फ्रेशर पार्टी के कारण युनिवर्सिटी में खूब चहल-पहल थी ..हाल नये पुराने चेहरों से खचाखच भरा था। स्टेज पर
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