क्षणिका
मुर्दा ही तो थे अब तलक बन बैठे इन्सान लगाने इल्ज़ाम अंजु गुप्ता
Read Moreकोशिशों का एक थैला दिया था माँ ने बचपन में जिसमे बेहिसाब उम्मीदें भरी थीं तभी तो मन आज भी
Read Moreसब के सब देख रहे थे लगी हुई थी आग जलता हुआ रावण दर्शनार्थी अस्त ब्यस्त ट्रेन की डरावनी चिंघाड़
Read Moreये ख़ामोशी सिर्फ बोलती ही नहीं लड़ती भी है और कई बार जंग भी हो जाती है बिना किसी गोली
Read More(1) भाई के घर से लौटी बहन उदास दिख रही थी राखी बांधने में कितना घाटा हुआ हिसाब लिख रही
Read Moreअभी राह में हूँ । ऐ बरखा! जरा थम के बरस । या लगा लेने दे, दो घूंट “मैं” के
Read Moreक्यों भटकते हो घृणा के और वैर के गलियों और चौबारों में? घूमना है तो घूमो प्रेम के गलियारों में
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