ग़ज़ल
वो होता नहीं हमारा क्यों, रुठा किस्मत का तारा क्यों! आते नहीं एक दिन मिलने, फिर करते हो इशारा क्यों!
Read Moreकाफ़िया- आरों, रदीफ़- पर जी करता है लिख डालूँ कुछ नए बंद बीमारों पर जिसने जीवन दिया पिता बन उनके
Read Moreछीन सकता है भला, कोई किसी का क्या नसीब? आज तक वैसा हुआ, जैसा कि जिसका था नसीब। माँ तो
Read Moreएक लम्हा ज़हन पे तारी है फिर भी मन की उड़ान जारी है किस तरह दिल को अपने समझाएं खेलना
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