दर्पण
जीवन के अंतर्द्वंद को समझना इतना आसान कहाँ , खिलते हैं फूल बगिया में पर आनंद माली के बिन कहाँ
Read Moreप्रकृति ने दिया है भरपूर कभी किया नहीं संचित जितना जो ग्रहण कर सके दिया बिना भेदभाव किये बांट देती
Read Moreनन्ही परी! मेरी नन्ही सी परी है वो सोने सी खरी है मासूम है अंजान भय का नहीं ज्ञान बस
Read Moreआज वो फिर से नहाने चल दिये पाप गंगा में बहाने चल दिये पाप की गठरी उठाकर शीश पर पुण्य
Read Moreहम कैसा खाना खाएं (2) आओ थोड़ा तुम्हें बताएं किशोरों जरा ध्यान से सुनो (2)- खाना साफ जगह पे
Read Moreतुम गुलाब से मुस्काते हो ! दिल यों लूट लिए जाते हो !! हम सब तुम पर वारी जायें
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