मानवता
मानव अपनी मानवता क्यो खो चले , अपनी सारी वाफाएँ भूल चले, आज हर गली गली खुन खराबा होता, क्यो
Read Moreअब भी शेष है, संस्कृति वस्त्र तन पर, अमीरी उसे हटा दो.. मैं भारत हूं, संस्कृति का पुरोधा मुझे लुटा
Read Moreपार्क में अकेला बैठा हूँ बिलकुल तनहा स्मृतियाँ, हिचकोले खा रही हैं । याद है ! हम-तुम बैठे थे यहीं
Read Moreजाने कितने झूले थे फाँसी पर, कितनो ने गोली खाई थी क्यो झूठ बोलते हो साहब, कि चरखे से आजादी
Read Moreकल शाम, मैं गुमसुम सा, अपने घर के अन्दर बैठा था , अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई, कुछ शोर सा
Read Moreएक पत्थर के मूरत पर सजाएं गए है करोड़ो के गहने वही बाहर चौखट पर एक बच्चे को मैंने एक
Read Moreमेरी खुशियों की चाभी कहीं खो गयी मेरी किस्मत भी जाने क्यों सो गयी मेरे सपनों को ऐसे बिखरते देखकर
Read Moreबचपन की यादें मां का आंचल पापा का दुलार छोड आयी हूँ बचपन की सहेली आंगन, वो देहली भाई का
Read Moreअबला नही हूं मैं परम्परा की चूडियां पहनी है संस्कार का सिन्दूर सजाया है हाथो मे मेहंदी जरूर है पर,
Read More