माँ
ज़िंदगी का पहला सबक तुमसे ही सीखा था ! माँ तुम ही मेरी पहली गुरू थी , क्योंकि बात करना
Read Moreफूल चढा कर श्रृद्धा के, बीती बातों की अर्थी पर। बीज हौसलों के बोता हूं, उम्मीदों की धरती पर॥ रोज
Read Moreएक गरीब की आँखों देखी कह रही हूँ बात, बैठकर अलाव के पास कटती जाड़े की रात। आग के पास
Read Moreदिसम्बर के महीने में वो मिली थी उस धूप के बादल से दिन और तारीख उसे अब याद नहीं सुबह
Read Moreईश्वर तेरे खेल भी निराले हैं जीवन में किसी के उजाले हैं किसी और दर दर भटक रहा कोई मिलते
Read Moreरोते भी हैं सिसकते भी हैं हर पल उन्हें याद करते भी हैं पास भी आ नही सकते दूर भी
Read Moreनहीं मैं नहीं चाहता तुम मेरे लिये संयोग और वियोग की नज़्में लिखो नही मैं नहीं चाहता तुम अपने मन
Read Moreकभी तेरा दिल रखने के लिए, कभी तेरी मासूमियत देखकर, मैंने तेरी बातें मान लीं अपना मन मारकर, आज देखती
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