कविता

कविता : बेचारी की बेचारी रही

झाँसी की रानी थे हम तुम नौकरानी बना दिए, फूलों पर रक्खोगे यह कह हमें प्यार का झांसा दिए|| मौन रहते हैं तो कहते हो मुहं हम फूला लिए, बोलते हैं तो कहते हम घर सर पर क्यों उठा लिए|| बना भोजन करती इन्तजार तेरा तो कहते हो क्या हैं यह नौटंकी, खा-पीकर सोने चली […]

कविता

हायकू : धरती – २

वृक्ष कटन हताहत धरती खल इंसान| सलिल लुप्त सुबकती धरती वीरुध शून्य| धरती पुत्र नीलाम की अस्मिता धन के लिए| हृदय घाव दिखलाती धरती दरार रूप| आहत आज दिव्य पदार्थ धार्या दुखित हुई| स्वर्ग कश्मीर भारत भूमि शोभा तुषार पर्त| — सविता मिश्रा

कविता

हायकू : धरती – १

  जेवर वृक्ष धरती हरी भरी गर्व करती| बंजर हुई हिय कर्म मानुष प्रसूता धरा| भू-गर्भ जल कराहती धरती अति दोहन| नेह अपार धरती गदराई सुधा बरसे| मानुष जात हर विधि दोहन दनुज धरा| —  सविता मिश्रा

कविता

तुम सुनो तुम्हारे संग हमें चढ़ी खुमारी हैं

यादों में बस तुम हो ख्वाबो में बस तुम हो तुम सुनो प्रिये तुम बिन ये रात बेचारी हैं… जब सोचे तुम्हे सोचें जब चाहे तुम्हे चाहे तुम सुनो तुम्हारे संग हमें चढ़ी खुमारी हैं ….. तुम साथ जो होते हो हमें होश नहीं रहता  तुम दूर जो जाते हो ये वक़्त नहीं बहता अब […]

कविता

नहीं समेटी नहीं जाती पीर अब तो

नहीं समेटी नहीं जातीपीर अब तोकागजो मेंहर्फ़ों में किस्सों में विचारों में मात्र यहाँ या और कही भी लिख देने भर से नहीं सुलझता ये जाला उलझन का ….. जबसे बदलने लगे हालात मुल्क के महफूज़ नहीं बेटियां घरो में आजकल घुस रहे है भेड़िये दीवारे फांदकर गोश्त की चाह में वही टपकता है खून किसी कोने […]

कविता

जला आई हूँ मैं

जला आई हूँ मैंतुम्हारी रामायणजहाँ पूजा जा रहा थासीता को…बनाकर देवी-स्वरूपानहीं बनना था मुझे सीता नहीं देनी थी अग्नि-परीक्षा ना समाना था.. धरती की गोद में नहीं लेना था.. तमगा कोई पतिव्रता होने का ना भटकना था विरह भोगने हेतु ना जीना था जीवन एकाकी इसलिए…था जरुरी जला दूँ मैं तुम्हारी रामायण ….. दफना दिया […]

कविता

तुम गए तो मेरी प्यास गई

तुम गए तो जैसे प्राण गए, मेरे जीवन की आस गई तर्षित थी मैं जन्मों से,. तुम गए तो मेरी प्यास गई जीवित तो…. अब भी हूँ मैं मैं हर्षित…. भी रह लेती हूँ तुम बिन चिंतन शून्य है पर मैं कल्पित भी रह लेती हूँ  जीनें की चाह थी मेरी भी, तुम गए तो मेरी साँस गई तर्षित थी […]

कविता

हर रूप में नारी महान…. (कविता)

क्रोधाग्नि में हो तो कुछ भी कर गुजरती है , स्नेह में हो तो आकाश को भी पीछे छोड़ देती है, वात्सल्य की मूर्ति बन अवनि के गरूर तोड़ दे , मीठी वाणी ऐसी की मन को भी हर जाये , प्यार में हो तो झरने की तरह बहती जाये , अपराजिता, निडर, अति सहनशील […]

इतिहास कविता

आज वीरांगना लक्ष्मीबाई भी शहीद हुयी .(18 जून 1958 )

“खंजर की चमक खनक तलवार की  खौफ से जीता था दुश्मन सदा जिसके वार से  कांपते थे दिल ..डोलती थी सत्ता जिसके नाम से गुडिया नहीं भायी उसको चूड़िया न सुहाई वक्त को  शब्द जो बोलती थी तलवार से तौलती थी बंदूक भाला बरछी सखी दोस्त बन चले थे था घुड़सवारी शौक .. वीरबाना जिसका […]

कविता

****पिता****

****पिता**** माँ का हर श्रृंगार पिता। बच्चों का संसार पिता।। माँ आँगन की तुलसी है। दर के वंदनवार पिता।। घर की नीव सरीखी माँ। घर की छत-दीवार पिता।। माँ कर्त्तव्य बताती है। देते है अधिकार पिता।। बच्चों की पालक है माँ। घर के पालनहार पिता।। माँ सपने बुनती रहती। करते है साकार पिता।। बच्चों की […]