दुनियां पागल है यां फिर मैं दीवाना
दुनियां है इक पागल खाना मैं भी पागल तुम भी पागल सब के सब यहां हैं पागल कोई पैसे को
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Read Moreअब वह समय नहीं रहा अब मैं अबला नहीं सबला हो गई हूँ। वो समय गुजर गया जब मैं छुईमुई
Read Moreख्वाब की खिड़कियां खुल गई हैं उनकी, जिन्हें रोज शराब और शबाब मिलता है। मेरे
Read Moreमन की इच्छा हो तुम मेरे जीवन की अभिलाषा हो , धुंधले से मेरे शब्दों की, तुम स्पष्ट रूप परिभाषा
Read Moreहां! मुखर हो गई है,,, मेरी लेखनी लिखना नहीं चाहती… यह कविता! कैसे लिखे सुंदरता पर यह जब रोज मरे…
Read Moreएक तरफ हम ‘गीता’ को आदर्श मानते हैं । कर्म को सबका गूढ़ मानते हैं , दूसरी तरफ उस रचना
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