व्यथा
मैं सिर्फ कहने भर को अन्नदाता बनाम किसान हूँ पर हूँ बेबस कभी मौसम के आगे कभी अच्छी फसल या
Read Moreनीली-नीली गिरिश्रृंखलाओं , हरे-भरे वृक्षों , टेढ़ी-मेढ़ी राहों से घिरे गोड़ आदिवासी बाहुल्य एक छोटा सा गाँव है चितनार। धान
Read Moreहमने आनंद के दीपों को जगमगा दिया है मैं सूरज हूँ कोई मंजर निराला छोड़ जाऊँगा, डूबते हुए भी ढेर
Read More*किसान की समस्याओं को आंदोलन का नाम देना कहांँ तक उचित है एक विचार मंथन के साथ प्रस्तुत यह आलेख*
Read Moreसोच रही हूंँ , कैसे तुझसे अपनी पहचान कराऊंँ मैं, कैसे तुझसे आज मिलूंँ मैं, कैसे परिचय करवाऊंँ मैं। खेतों
Read Moreकिसी का दिया नहीं खाता हूँ अपना परिश्रम स्वयं करता हूँ खेतों में हल और ट्रेक्टर चलाता हूँ धूप में
Read Moreलौट आया फिर से वो ही कोरोना का कहर.. चुनाव और दीपावली बाद फिर जागा मेरा शहर.. सख्ती और कार्यवाही
Read Moreदुनिया की उत्तम किताब है हम , मगर खुद को पढ़ना शेष है। पोथी पढ़-पढ़ थक हारे हैं, बिना मौत
Read Moreनोबेल पुरस्कार के संस्थापक और ‘डायनामाइट’ जैसे विध्वंसक पदार्थ की खोजकर इसके लिए प्रायश्चितता पाने आजन्म विचलित रहे और अविवाहित
Read Moreकवि मिथिलेश राय की प्रस्तुत कविता में बुनी गई बारीकियाँ तो देखिए- स्त्रियों के वस्त्रों पर फूल टंके होते हैं
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