फर्ज (लघुकथा)
निदा फ़ाज़ली ने कहा था- ”घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें किसी रोते हुए बच्चे को
Read Moreनिदा फ़ाज़ली ने कहा था- ”घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें किसी रोते हुए बच्चे को
Read Moreउसके दर से होकर बेकरार चले एक बेवफा से करके प्यार चले तन्हाई में गम को उतार चले भीड़ से
Read Moreराहुल सरकारी दफ्तर में नौकरी करते है और दिसम्बर का अंतिम महीना चल रहा था राहुल की कुछ छुट्टियां बची
Read Moreसपनो को बुनना छोड़ दिया। हाँ मैंने अब लिखना छोड़ दिया।। हर तरफ अब झूठ की मंडी लगी है।
Read Moreहर जन्म में, मैं अथाह तप करती हूं, तुम्हें पाने की खातिर में हर बार मरती हूं। तुम तो मगर
Read Moreजीवन क्या है यह हो जाए वोह हो जाए यह मिल जाएं वो मिल जाएं यह सब अभिलाषा ही तो
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