चिंता ( लघुकथा )
बस गंतव्य की ओर बढ़ रही थी ।रात गहरा चुकी थी । बाहर का दृश्य स्पष्ट दिखे, इसलिए बस के
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Read Moreआज करूणा, सासू माँ के न रहने पर दोराहे पर खडी थी जिसकी कल्पना स्वप्न में भी नहीं की थी
Read Moreशनिवार का दिन था । मैं सुबह दस बजे कॉलेज के लिए अपने काइनेटिक हौंडा से निकली जैसे ही मैं
Read Moreराहुल ने ध्यान से टीपू की पूरी बात सुनी । राहुल को पूरी कहानी सुनाते सुनाते टीपू की सिसकियाँ कब
Read Moreरवि ने आफिस से आते ही मीरा को तैयार होने को कहा, पास ही माँ भी खड़ी थी। पर रवि
Read Moreउफ् इतनी गर्मी में ट्रेन खड़ी कर दी। आदमी, आदमी की तरह नहीं भेड़-बकरी की तरह ठूँसा पड़ा है, एकदम
Read Moreचालीस वर्षीय जाने – माने समाज सुधारक कमल ‘पुष्प’ जी सामने बैठे श्रोताओं को बता रहे थे, “माता – पिता
Read Moreगाँव से रघु की माँ सुलोचना उसके पास शहर आई तो संयोगवश उसी महीने उनका जन्मदिन भी था। पड़ोस की
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