कुण्डलियाँ
राम राम मन में बसे, राम नाम में लीन । और कछु सूझत नहीं, मन प्रभु के आधीन ।।
Read Moreराम राम मन में बसे, राम नाम में लीन । और कछु सूझत नहीं, मन प्रभु के आधीन ।।
Read Moreमेरी पहली कुंडलिया :- खालीहांड़ी देख कर, बालक हुआ उदास। फिर भी माँ से कह रहा, भूख लगी ना प्यास।।
Read Moreसोने की चिड़िया कभी, कहलाता था देश आई आँधी लोभ की, सोना बचा न शेष। सोना बचा न शेष, पुनः
Read Moreकृष्ण-सुदामा की तरह, मिले नहीं अब मीत। झूठ-मूठ बस स्वार्थवश, करते दिखते प्रीत। करते दिखते प्रीत, जेब जो होती भारी।
Read Moreलमो-लमो करने लगा, पूरा भारत देश। लेकिन वो आते नहीं, जाकर बसे विदेश। जाकर बसे विदेश, न जाने डर किसका।
Read Moreअपने यू.पी. की पुलिस, बहुतै तेज तरार। चोरों की खटिया खड़ी, खोने लगा करार। खोने लगा करार, चुराना भैँसे भूले।
Read Moreजिसने झेली दासता , उसको ही पहचान । कितनी पीड़ा झेलकर , कटते हैं दिनमान ।। कटते हैं दिनमान ,
Read Moreहास्य व्यंग का हर कवि पहलवान श्रीमान । शब्दों का मुगदर बना द्वंद्व करे बलवान । द्वंद्व करे बलवान कि
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