“गीतिका”
आधार- रोला छंद, समांत- ओगे, अपदांत तकते मेरी राह, कहो कबतक भटकोगे रहते तुम चुपचाप, भला कैसे सुलझोगे हँसती कब
Read Moreकितने बेरहम है मेरे अपने , बेदम कर के ही माने इश्क की झूठी तसल्ली चाही , वो गम दे
Read Moreउम्र सीढ़ीयां चढ़ती जाये , यौवन भरे कुलांचे ! कैसे दिल का हाल बतायें , मन मयूर है नाचे !!
Read Moreमुस्कानों को सरल बनाना , सीखे कोई हमसे ! मर्यादा में रहना भी है , सचमुच हमें कसम से !!
Read Moreकैसी ये आफत है हम कहेंगे कैसे। दिल पर इस बोझ को अब सहेंगे कैसे। वतन की कम खुद की
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