किलकि चहकि खिलत जात !
किलकि चहकि खिलत जात, हर डालन कलिका; बागन में फागुन में, पुलक देत कहका ! केका कूँ टेरि चलत, कलरव
Read Moreकिलकि चहकि खिलत जात, हर डालन कलिका; बागन में फागुन में, पुलक देत कहका ! केका कूँ टेरि चलत, कलरव
Read Moreअमलतास के पीले गजरे, झूमर से लहराते हैं। लू के गर्म थपेड़े खाकर भी, हँसते-मुस्काते हैं।। ये मौसम की मार,
Read Moreअजब हो रही है गज़ब हो रही है देखूँ तुझे तो गज़ल हो रही है
Read Moreअपना धर्म निभाओगे कब जग को राह दिखाओगे कब अभिनव कोई गीत बनाओ, घूम-घूमकर उसे सुनाओ स्नेह-सुधा की धार बहाओ
Read Moreहो गया मौसम गरम, सूरज अनल बरसा रहा। गुलमोहर के पादपों का, “रूप” सबको भा रहा।। दर्द-औ-ग़म अपना छुपा, हँसते
Read Moreबिन तुम्हारे जिंदगी परिहास है। शेष अब तो आस ही बस आस है। भेजते थे तुम कभी जो खत हमें
Read Moreक्या वेदना जग की सुना दूँ , या प्रीत का उपहार दूँ । या मौन तोड़ू
Read Moreजन गण की आशाएं भी है जन मन की पीड़ाएं भी है दोनों की अपनी परिभाषा दोनों की अपनी मजबूरी
Read Moreसत्य के उजाड हो गये झूठ के दरख्त फल गये वक्त की है मार देखिये चाँदनी में हाथ जल गये
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