“मुक्तक”
(मापनी- 1222, 1222, 1222, 1222) कहीं पानी, कहीं नाविक, कहीं पवन घिर आई है कहीं बरस कर बरखा नभ घिरी
Read Moreमेरे हँसने और रोने में तुम्हारा ही नाम आयेगा दिल तोड़ दो या जोड़ दो तुम्हारे ही काम आयेगा अपना
Read Moreकि गूँजती रहे हिन्दी जहाँ के कोने-कोने तक सशक्त रहे कवियों मे बालपन से वृद्ध होने तक तेरे शब्द श्रृंगार
Read More1 – नई आलोचनाओं का , नया यह दौर आया है कि सच चुपचाप बैठा है, झूठ बस लहलहाया है
Read More१- फैला था चारो तरफ ,तम रूपी अज्ञान । गुरुरूपी दीपक जला ,हुआ दीप्ति का भान ।। २- हम माटी
Read Moreगुरु ब्रह्मा विष्णु गुरु, गुरु शंकर अवतार। गुरु मिलाएं ईश से, मन से हटाके विकार॥ सच्चे गुरु की सीख से,
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