कविता : दरमियां
दो टूक की खामोशी सिमटी साज़िशों में उलझ गये… कुछ तो था……. तेरे-मेरे दरमियां… वक़्त के मंज़र पल के अहसास
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Read Moreचलने से पहले सोंच समझकर अपने लक्ष्य की रेखाएँ खींचना चाहता हूँ। लक्ष्यहीन भटकन से बचकर उस मंजिल तक पहुंचना
Read More(1) मोहभंग आक्रोश की इस घडी में आइए सिध्दार्थ, कबीर की तरह समाज धर्म की बुरी विचारधारा पर प्रहार करें।
Read Moreनाचत हिरन वहाँ, वनराज वन में सोहत मुकुट जहाँ, युवराज धन में।। मोहक किरन कली, हमराज अपना नाहक फिरन चली,
Read Moreकुदरत ने सब कुछ दिया, आम पाम अरु जाम हम मानव ने रख दिया, अमृत फल का दाम अमृत फल
Read Moreसद्भावना जीवन सार बने हर मानव का श्रृंगार बने- सद्भावना से कायम धरती, यह भेद नहीं कोई करती, जग-जीवन को
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