कविता – गुनाह
कुछ इस कदर अपने गुनाहों का हिसाब रखता हूँ, एक आईना पीछे और एक आईना सामने रखता हूँ, सभी गुनाहों
Read Moreकुछ इस कदर अपने गुनाहों का हिसाब रखता हूँ, एक आईना पीछे और एक आईना सामने रखता हूँ, सभी गुनाहों
Read Moreलू अंधड़ धूल के गुबार। ये गरमी की है पहचान।। टपकता है खूब पसीना। बार बार ही पानी पीना।। ठंडी
Read Moreमेरे देश के नौजवानो , शक्ति के दीवानो , क्यों देश में हिंसा फैली है क्यों काली हुई दिवाली है
Read Moreजब दिल हंसता हैतो पूरी दुनिया खिल उठती हैहंसी बस खूबसूरत होती हैबेइंतहा खूबसूरत होती हैहंसी का हर रंग चटख
Read Moreदहकती धरती को देखकर, लाशों के ढेर की गिनती करते रो रहे है, राम और रहीम कल अचानक बवाल उठा,
Read Moreये क्या हो रहा है आज मिला हमें कैसा यह ताज इंसानी पाश का खंडन कर जाती,धर्म,सम्प्रदाय में विखंडित कर
Read Moreचार दिन की चाँदनी फिर अंधेरी रात है तेरी न यहाँ कोई बात है भरी जवानी में काहे इतरावे रूप
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